Sunday 21 June 2015

मणिपुर में हिंदी शिक्षण का संक्षिप्त इतिहास




मणिपुर में हिंदी शिक्षण का संक्षिप्त इतिहास

     मणिपुर में हिंदी शिक्षण भारत के स्वतंत्रतापूर्व हिंदी के प्रचार के माध्यम से आरंभ हुआ। मणिपुर में हिंदी प्रचार दो स्तरों पर हुआ- व्यक्तिगत और संस्थागत हिंदी प्रचार।

व्यक्तिगत स्तर पर हिंदी प्रचार माध्यम से हिंदी शिक्षण
     व्यक्तिगत स्तर पर मणिपुर में हिंदी प्रचार आंदोलन का प्रारंभ करने वाले में पंडित राधामोहन शर्मा, थोकचोम मधु सिंह, ललिता माधव शर्मा, गुरूमयुम बंकबिहारी शर्मा, कैशाम कुंजबिहारी सिंह आदि का नाम लिया जा सकता है। इन सभी के प्रयास से हिंदी को मणिपुर में वह स्थान मिला, जिनपर आज हम गर्व कर सकते हैं।
     "पंडित राधामोहन जी सड़क साफ करके उस पर या किसी घर की दिवार पर '', '', '', '' लिखते थे। कलम काम कोयला करता था। बूढ़े-बूढ़े छात्र, किशोर छात्रों के साथ सड़क पर ही बैठते थे और इस प्रकार राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार का यज्ञ प्रारंभ होता है।"[1]
            पंडित राधामोहन शर्मा की प्रेरणा से सन् 1933 में “भैरोदान हिंदी स्कूल' की स्थापना हुआ। इसके पूर्व पंडित राधामोहन शर्मा और थोकचोम मधु सिंह ने सबसे पहला हिंदी प्रचार विद्यालय थोकचोम मधु सिंह के घर पर तथा दूसरा इम्फाल के उरिपोक चौराक कोट के पास प्रारंभ किया था। उन दिनों हिंदी प्रचारकों को कोई सुविधा नहीं थी। दोनों हिंदी सेवियों ने अपने हाथ से लिखकर दोनों विद्यालयों के लिए पाठ्यपुस्तक तैयार की। कुछ समय बाद श्री कुंजबिहारी कैशाम ने मोइराङखोम और तेरा कैथेल में हिंदी स्कूल प्रारंभ किए। उन्होंने आगे चलकर 'राष्ट्रलिपि स्कूल' की स्थापना भी की, जो अब मणिपुर सरकार के नियंत्रण में चल रहा है।"[2]

संस्थागत स्तर पर हिंदी प्रचार माध्यम से हिंदी शिक्षण
     मणिपुर में संस्थागत हिंदी प्रचार माध्यम से हिंदी शिक्षण का श्रीगणेश सन् 1928 में 'हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग' के द्वारा हुआ। सन् 1936 में 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति' की स्थापना वर्धा में हुई और इसके अंतर्गत मणिपुर में सन् 1940 में 'मणिपुर राष्ट्रभाषा प्रचार समिति' की स्थापना हुई। "इसके द्वारा मणिपुर में 51 राष्ट्रभाषा विद्यालय और 13 राष्ट्रभाषा महाविद्यालय खोले गए। आजकल 53 परीक्षा केंद्रों में तीन हजार से अधिक मणिपुरी परीक्षार्थी सम्मिलित होते हैं। इनमें वर्धा समिति की राष्ट्रभाषा कोविद और राष्ट्रभाषा रत्न की उपाधियों को प्राप्त करने हेतु परीक्षाएँ होती हैं। यह समिति जेल केंद्रों पर भी अपने विद्यालय चला रही है। प्रौढ़ लोग भी इन परीक्षाओं में सम्मिलित होते हैं और लाभ उठाते हैं।"[3]
     मणिपुर में द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण के क्षेत्र में मणिपुर हिंदी परिषद की भूमिका एक महत्वपूर्ण स्तंभ की है। मणिपुर हिंदी परिषद की स्थापना एक ऐतिहासिक बैठक के बाद 7 जून 1953 को हुई। यह संस्था स्वतंत्र रूप से 6 परीक्षाओं का संचालन करती है। हिंदी प्रारंभिक, हिंदी परिचय, हिंदी प्रबोध, हिंदी विशारद और हिंदी रत्न। इनमें हिंदी प्रबोध, मैट्रिक की समकक्ष, हिंदी विशारद इंटर की समकक्ष, हिंदी रत्न बी.ए. की समकक्ष की मान्यता प्राप्त है। यह परीक्षाएं सन् 1954 से चली आ रही है।
     मणिपुर के पहाड़ी तथा मैदानी क्षेत्र में करीब 50 महाविद्यालय और विद्यालय है। जहाँ मणिपुर हिंदी परिषद द्वारा नियोजित पाठ्यक्रम के आधार पर चलती है।

     सन् 1947 में मणिपुर हिंदुस्तानी प्रचार सभा की स्थापना की गई और मणिपुर में हिंदी शिक्षण कार्य में सहयोगी सिद्ध हुए। स्वाधीनता प्राप्त करने के बाद हिंदी राजभाषा बनी तो इस संस्था के नाम 'हिंदुस्तानी' शब्द को हटाकर 'मणिपुर हिंदी प्रचार सभा' नाम दिया गया। यह एक पंजीकृत संस्था है, जो अपनी ओर से परिचय, प्रथमा तथा प्रवेशिका नामक तीन परीक्षाएँ चलाती है। अभी इसका कार्यालय सिङ्जमेय् कोङ्बा रोड, अकामपात् में स्थित है। इसके उच्च स्तर की परीक्षाएँ-प्रबोध, विशारद तथा प्रवीण, असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, गुवाहाटी के आधार पर चलती है।
     डॉ. सी.ई. जीनी जी इस संस्था के बारे में लिखती हैं- "मणिपुर हिंदी प्रचार सभा, इम्फाल का एक अपना विधान है और वह सरकार द्वारा स्वीकृत है, जिसके अनुसार वह अपनी परीक्षा उप-समिति, साहित्य उप समिति, कार्यपालिका सभा तथा व्यवस्थापिका सभा जैसे अंगों का संगठन करती है। सभा के अपने तीन विभाग और हैं, यथा-
·        प्रचार विभाग
·        पुस्तक विभाग और
·        परीक्षा विभाग। सभा का पुस्तक प्रकाशन विभाग अपनी आवश्यकता की पुस्तकें प्रथमा तथा प्रवेशिका के परीक्षाओं में पाठ्य-पुस्तक के रूप में निर्धारित है।  
     विद्यालय संचालन और प्रचार कार्य के अतिरिक्त सभा राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति संचेतना जगाने और उसे जाग्रत बनाये रखने के मंतव्य से- "जनजातीय हिंदी शिक्षण शिविर" और विभिन्न हिंदी संस्थाओं के सहयोग हिंदी प्रशिक्षण शिविर भी संचालित किया करती है।"[4]
     सन् 1970 में नागा हिंदी विद्यापीठ की स्थापना हुई और नागा जनजातीय के बीच हिंदी शिक्षण कार्य करने लगे। "इसका मुख्य उद्देश्य मणिपुर के दुर्गम क्षेत्रों के लोगों को हिंदी के परिचय क्षेत्र में लाना और उन्हें राष्ट्र की मुख्य सांस्कृतिक धारा से जोड़ने का प्रयास करता है।"[5]
     मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में निवासीय जनजातियों को हिंदी सीखाने के लिए 'मणिपुर ट्राइबल्स हिंदी सेवा समिति' नामक संस्था की स्थापना हुई। इसके पूर्व 'ट्राइबल्स हिंदी प्रचार सभा' नामक एक संस्था सन् 1961 में प्रकाश में आई थी और इसके अंतर्गत 5-6 शिक्षण संस्था भी खोले गए थे। लेकिन यह संस्था बंद हो गई है।

सरकारी हिंदी शिक्षण संस्थाएँ
     स्वाधीनता प्राप्त करने के पश्चात जैसे भारत के अन्य प्रांतों में द्विभाषा तथा त्रिभाषा सूत्र लागु हुआ। वैसे ही मणिपुर में भी लागु हुआ। मणिपुर के विद्यालयों में कक्षा वर्ग 3 से 8 तक हिंदी विषय अनिवार्य रूप में और 9 से 10 तक वैकल्पिक रूप में पढ़ाया जाता है। कक्षा वर्ग 11 और 12 में हिंदी विषय इच्छुक छात्र अध्ययन कर ऊँचे वर्ग तक अध्ययन करते हैं। राज्य शिक्षा बोर्ड, बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजूकेशन, मणिपुर तथा काउंसिल ऑफ सेकेंडरी 'एजूकेशन', मणिपुर तथा सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजूकेशन (सी.बी.एस.सी.ई.) द्वारा परीक्षाओं का संचालन करते हैं। बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजूकेशन द्वारा पाठ्यपुस्तकों का निर्माण भी करते हैं।
     स्नातक में हिंदी विषय ऐच्छिक रूप में अध्ययन करने की सुविधा है। जो-जो हिंदी विषय पढ़ना चाहते हैं वे स्वेच्छा हिंदी विषय का चयन करते हैं। महाविद्यालयों में हिंदी ऑनर्स तथा स्नातक कला में हिंदी विषय का अध्ययन होते हैं। स्नातक की परीक्षा मणिपुर विश्वविद्यालय द्वारा ली जाती है।
     हिंदी शिक्षकों की अध्यापन में वृद्धि लाने हेतु सन् 1972 में दो शिक्षण संस्थाएँ राजकीय हिंदी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान और राजकीय हिंदी शिक्षण प्रशिक्षण महाविद्यालय कार्यरत हैं। राजकीय हिंदी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान में प्राथमिक स्तर की हिंदी शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाता है और राजकीय हिंदी शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में माध्यमिक स्तर की हिंदी शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाता है। इन दो संस्थाओं में क्रमशः हिंदी टिचिंग सर्टीफिकेट कोर्स तथा हिंदी शिक्षण पारंगत की कक्षाएँ चलती हैं।
     सन् 1979 में मणिपुर में हिंदी का स्नातकोत्तर अध्यापन प्रारंभ हुआ। पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पी.जी. सेंटर के रूप में और बाद में मणिपुर विश्वविद्यालय के नाम से स्थापित किया गया। इस विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग द्वारा एम.ए. हिंदी तथा हिंदी विषय में पी-एच.डी. तक का अध्ययन होता है।             



[1] संकल्प और साधना, देवराज, प्रकाशक, पत्रिका विभाग, मणिपुर हिंदी परिषद, प्रथम संस्करण, जून 1998, पृ. 20
[2] वही, भूमिका पृ. V
[3] हिंदी शिक्षण का इतिहास और विकास, रामलाल वर्मा, केंद्रीय हिंदी संस्थान, पृ. 112
[4] पूर्वांचल प्रदेश में हिंदी भाषा और साहित्य, लेखक डॉ. सी.ई.जीनी, प्रकाशन वाणी प्रकाशन, प्रथम संस्करण, 1990 पृ. 93
[5] वही

Saturday 7 March 2015

हिंदी सेवी गुरुमयुम बंकबिहारी शर्मा

हिंदी सेवी गुरुमयुम बंकबिहारी शर्मा


हिंदी सेवी गुरुमयुम बंकबिहारी शर्मा का जन्म १८९३ को नागामापाल सिंगजुबुंग लैरक में हुआ | शर्मा जी विद्याध्यन हेतु काशी में पांच वर्ष, पंजाब में दो वर्ष, नवद्वीप में तीन वर्ष और कलकत्ते (वर्तमान कोलकाता) में दो वर्ष रहें | संस्कृत, हिंदी , बांगला  भाषा पर उनका अधिपत्य था | वे अंग्रेजी, असमिया, तथा बर्मा भाषा भी जानते थे | उन्होंने कलकत्ते (संस्कृत कॉलेज) से ‘व्याकरण तीर्थ’ उपाधि प्राप्त की |
 उन्होंने अपने घर पर ललिता माधव के सहयोग से हिंदी पढ़ने का कार्य शुरू किया था | शाम के समय कक्षाएं निशुल्क चलती थीं| इस तरह बंकबिहारी शर्मा ने मणिपुर में हिंदी की आवश्यकता को जानते हुए हिनिद प्रचार कार्य शुरू किया | १९२८ को हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के सभा पति गणेश शंकर विद्यार्थी, प्रधान मंत्री कृष्णकांत पालवीय तथा परीक्षा मंत्री जगन्नाथ दास प्रसाद को उन्होंने मणिपुर में संस्थागत हिंदी प्रचार कार्य का श्रीगणेश करने के लिए कहा | फम्स्वरूप उन्होंने असम में संपन्न होने वाली हिनिद सभा में “राष्ट्रभाषा परीक्षा” देकर प्रमाणित प्रचारक बने और हिंदी प्रचार को गति देने लगे |
      शर्मा जी ने अपने जीवन यापन के लिए जॉन स्टोन हाई स्कूल नामक तत्कालीन सरकारी स्कूल में प्रधान्चार्य बने | शर्मा जी ने स्कूल की जिम्मेदारी निभाते हुए संस्कृत तथा हिनिद प्रचार करने वाले व्यक्ति रहे | द्वितीय विश्व युद्ध के कारण हिंदी तथा संस्कृत प्रचार को गति नहीं दे पाए |
बंकबिहारी शर्मा की प्रेरणा, से उसके संबंधी पंडित भागवत देव शर्मा भी हिंदी प्रचार में जुट गए | आज मणिपुर में हिंदी का जो वृहद रूप देखने को मिलता है उसमें बंकबिहारी जी की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता |
हिंदी सेवी बंकबिहारी शर्मा की मृत्यु 15 फरवरी १९६८ को हुए |

Friday 6 March 2015

मणिपुर : एक परिचय


मणिपुर : एक परिचय



प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण मणिपुर का अपना एक प्राचीन एवं समृद्ध इतिहास है | मणिपुर के नामकरण के संदर्भ में जहाँ पौराणिक कथाओं से उसका संबंध जोड़ा जाता है, वहीँ से प्राप्त तथ्यों से यह प्रमाणित होता है कि प्राचीन काल में पडोसी राज्यों द्वारा मणिपुर को  विभिन्न नामों से पुकारा जाता था | जैसे बर्मियों द्वारा कथे, असमियों द्वारा मोगली,मिक्ली आदि | इतिहास से भी यहाँ पता चलता है की मणिपुर को मैत्रबाक, कन्ग्लेइपुन्ग या पोंथोक्लम आदि नामों से भी जाना जाता था |

      इस भूमि पर प्रथम शासक के रूप में नोंदा लाइरेन पकंबा ने १२० वर्षों (33-154  ई ) तक शासन किया | आगे जाकर मणिपुर के महाराज कियाम्बा ने 1467, खागेम्बा ने 1597, चराइरोंबा ने 1698,  गरीबनिवाज ने 1714, भाग्यचन्द्र (जयसिंह) ने 1763, गम्भीर सिंह ने 1825 को शासन किया | इन जैसे महँ वीर महाराजाओं ने शासन कर मणिपुर की सीमाओं की रक्षा कीं| 24 अप्रैल, 1891 के खोंगजोम युद्ध (एंग्लो मणिपुरी वार ) हुआ जिसमें मणिपुर के बीर सेनानी पाओना ब्रजवासी ने अंग्रेजों के हाथों से अपने मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीर गति प्राप्त की | अगले दिन से मणिपुर का ध्वज अंग्रेजों के आधीन हो गया | 1947 में जब अंग्रेजों ने मणिपुर छोड़ा तब से मणिपुर का शासन महाराज बोधचन्द्र के कन्धों पर पड़ा | 21 सितम्बर1949 को हुई विलय संधि के बाद 15 अक्टूबर 1949  से मणिपुर भारत का अंग बना है | भारत सरकार ने मणिपुर को चीफ-कमिश्नर के  अंतर्गत केंद्र शासित पार्ट-सी स्टेट का दर्जा दिया | 21 जनवरी 1972 से मणिपुर को पूर्ण राज्य का स्तर प्राप्त हुआ |

      यहाँ मणिपुर के संबंध में कुछ तथ्यों का उल्लेख करना समीचीन है  -मणिपुर भारत की पूर्वोत्तर सीमा पर स्थित ऐसा राज्य है. जिसका क्षेत्र फल 22,356 वर्ग किलो मीटर है |  जिसका 90% क्षेत्र पर्वतीय और 10% क्षेत्र समतल  है | 2011 की जनगणना के अनुसार मणिपुर की जन संख्या 27,21,756 है, जिसमें पुरुष की संख्या 13,69,764 और महिलाओं की 13,51,992 संख्या बताई गई है | साक्षरता 79.85% है | यह राज्य  अक्षांश 23.50 (उत्तर) से 25.41 (उत्तर) तक और देशांतर 93.2(पूर्व) से 94.47 (पूर्व) के बीच पड़ता है | यह समुद्र तल से 790 से 2020 मीटर तक की ऊँचाई पर स्थित है | मणिपुर की सीमा उत्तर में नागालैंड, पश्चिम में असम, दक्षिण में मिजोरम राज्य और पूरब में म्यान्मार (बर्मा) देश से जुडी है |

      मणिपुर के प्रशासनिक कार्य को सुगम बनाने के लिए इस राज्य को नौ जिलो और 38 उपखंडों में विभक्त किया गया है | वे नौ जिले हैं – विष्णुपुर, चांदेल, चूड़चंदपुर, इम्फाल वेस्ट, इम्फाल ईस्ट, सेनापति, तमेंगलोंग, थौबल और उख्रुल | इनमें से विष्णुपुर, थौबल, इम्फाल ईस्ट और इम्फाल वेस्ट घाटी में और शेष मणिपुर के पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित है |

      मणिपुर राज्य की राजधानी इम्फाल है | राज्य चिह्न कन्गलाशा, राज्य पशु शंगाई (वैज्ञानिक नाम : Cervus eldi eldi Mclelland), राज्य पक्षी – नोंगीन (वैज्ञानिक नाम : Syrmaticus humiae humiae), राज्य पुष्प – सिरोई लिली (वैज्ञानिक नाम : Lilium Mackliniae sealy), राज्य खेल – शगोल कांगजै है |

      घटी के दक्षिण भाग में विश्व प्रसिद्ध लोक्ताक झील है | इस झील के दक्षिणी किनारे पर कैबुल लमजाओ एक द्वीप उधान स्थित है जो विश्व के दुर्लभ प्राणी – संगाई नमक हिरन का निवास स्थान है |

श्री श्री गोविन्दजी मंदिर, कंग्ला गढ़, मणिपुर जूलॉजिकल गार्डन, लान्ग्थ्बल कायना, लैमराम के साडू चिरु वाटर फॉल, सिंगदा दाम, कैबुलामजाओ, लोक्तक झील, मोइरांग, कक्चिंग, अन्द्रो लौकोइपत , उख्रुल के सिरोई पर्वत, विष्णुपुर, कौब्रु लैखा  आदि मणिपुर के दर्शनीय स्थल है |

      इस प्रकार मणिपुर एक ऐसा पुराण, समाज, संकृति, प्रकृति की अपार संपल है | नौ पर्वत शृंखलाएँ इसकी भौगोलिक और सांस्कृतिक संपत्ति की रक्षा करती है | जन जीवन और जीने के शैलियों की दृष्टि से इस राज्य में अपार-वैविध्य है | इतना ही नहीं मणिपुर के पास भाषा और साहित्य की चेतना भ विलक्षण है |